21, మే 2023, ఆదివారం

 माला तो कर में फिरै, जीभ फिरै मुख माहिं।

मनुवा तो चहुँदिसि फिरै, यह ते सुमिरन नाहिं।।


कबीरदास जी कहते हैं कि मनुष्य हाथ में माला फेरते हुए जीभ से परमात्मा का नाम लेता है पर उसका मन दसों दिशाओं में भागता है। यह कोई भक्ति नहीं है।

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