दीपक चौरसिया ,
ने लिखा है भाजपा मोदी से पहले और मोदी के बाद,
जब तक "भाजपा" "वाजपेयी" जी के "विचारधारा"
पर चलती रही,
वो "राम" के
बताये "मार्ग पर" चलती रही।
"मर्यादा"
"नैतिकता", और "शुचिता", इनके लिए "कड़े मापदंड"
तय किये गये थे। "परन्तु" कभी भी "पूर्ण बहुमत" "हासिल नहीं"
कर सकी,
फिर होता है
" नरेन्द्र मोदी" का "पदार्पण! ........ मर्यादा पुरुषोत्तम "राम के चरण" चिन्हों पर "चलने वाली"
"भाजपा" को
"मोदी जी", कर्मयोगी "श्री कृष्ण" की राह पर ले आते हैं !
श्री कृष्ण "अधर्मी" को "मारने में"
किसी भी प्रकार की "गलती नहीं" करते हैं। ...........
"छल हो" तो "छल से"
"कपट हो" तो "कपट से"
"अनीति हो" तो "अनीति से" , "अधर्मी" को "नष्ट करना"
ही उनका "ध्येय" होता है!
"इसीलिए" वो
अर्जुन को "केवल कर्म"
करने की शिक्षा देते हैं !
"बिना सत्ता" के
आप "कुछ भी नहीं" कर सकते हैं ! इसलिए "कार्यकर्ताओं" को चाहिए कि "कर्ण" का "अंत करते" समय कर्ण के "विलापों पर"
ध्यान ना दें! .........
केवल "ये देखें
"कि"अभिमन्यु" की
"हत्या के समय" उनकी "नैतिकता" "कहाँ" चली गई "थी" ?
कर्ण के "रथ" का "पहिया" जब
"कीचड़" में धंस गया, तब
भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन से कहा: पार्थ, देख क्या रहे हो ? ......
इसे समाप्त कर दो!
"संकट" में घिरे
"कर्ण ने" कहा:
यह तो "अधर्म "है !
भगवान
"श्री कृष्ण" ने कहा: "अभिमन्यु" को घेर कर "मारने वाले", और "द्रौपदी" को भरे दरबार में
"वेश्या" कहने वाले के "मुख से" आज "धर्म की" बातें करना "शोभा"
नहीं देता है !!
आज
"राजनीतिक" गलियारा जिस तरह से "संविधान"
की "बात" कर रहा है, तो "लग रहा" है जैसे हम "पुनः" "महाभारत युग"
में आ गए हैं !
"विश्वास रखो", महाभारत का "अर्जुन नहीं चूका" था !
"आज का अर्जुन" भी नहीं चूकेगा !
यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत!
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम् !
"चुनावी जंग" में "अमित शाह" जो कुछ भी
"जीत" के लिए "पार्टी"
के लिए कर रहे हैं, वह "सब उचित" है!
साम, दाम, दण्ड , भेद ,राजा या क्षत्रिय द्वारा अपनाई जाने वाली नीतियाँ हैं, जिन्हें उपाय-चतुष्टय (चार उपाय) कहते हैं !
राजा को राज्य की व्यवस्था सुचारु रूप से चलाने के लिये सात नीतियाँ वर्णित हैं !
राजनीतिक गलियारे में ऐसा "विपक्ष नहीं" है, जिसके साथ "नैतिक-नैतिक"
खेल "खेला जाए"! सीधा
"धोबी पछाड़" ही"आवश्यक" है !
एक बात और!
"अनजाना इतिहास"
बात "1955"
की है! "
"सउदी" अरब के बादशाह "शाह-सऊदी" प्रधान मंत्री "जवाहरलाल नेहरू" के "निमंत्रण पर" "भारत आए" थे, वे 4 दिसम्बर 1955 को दिल्ली पहुँचे, "शाह-सऊदी" दिल्ली के बाद, "वाराणसी" भी गए!
"सरकार ने"
दिल्ली से "वाराणसी"
जाने के लिए, "शाह-सऊदी" के लिए एक "विशेष ट्रेन" में, "विशेष कोच" की व्यवस्था की! शाह सऊदी
"जितने दिन" वाराणसी में रहे "उतने दिनों" तक "बनारस" की सभी "सरकारी इमारतों" पर
"कलमा तैय्यबा" लिखे हुए "झंडे लगाए" गए थे!
"वाराणसी में" जिन-जिन रास्तों-सडकों से "शाह-सऊदी " को "गुजरना" था,
उन सभी "रास्तों-सड़कों" में पड़ने वाले मंदिरों और मूर्तियों को पर्दों से ढक दिया गया था!
इस्लाम की तारीफ़ में, और हिन्दुओं का मजाक उड़ाते हुए शायर "नज़ीर बनारसी" ने एक शेर कहा था: -
अदना सा ग़ुलाम उनका,
गुज़रा था बनारस से,
मुँह अपना छुपाते थे,
ये काशी के सनम-खाने!
अब खुद ही सोचिये कि क्या आज मोदी और योगी के राज में, किसी भी बड़े से बड़े तुर्रम खान के लिए, ऐसा किया जा सकता है ? आज ऐसा करना तो दूर, करने के लिए सोच भी नहीं सकता!
हिन्दुओ , उत्तर दो, तुम्हें और कैसे अच्छे दिन चाहिए ?
आज भी बड़े बड़े ताकतवर देशों के प्रमुख भारत आते हैं, और उनको वाराणसी भी लाया जाता है! लेकिन अब मंदिरों या मूर्तियों को छुपाया नहीं जाता है, बल्कि उन विदेशियों को गंगा जी की आरती दिखाई जाती है, और उनसे पूजा कराई जाती है!
*जब था कांग्रेसियों का हिंदुत्व दमन!* *अब है भा ज पा का *"लक्ष्य हिंदुत्व के द्वारा हिंदू राष्ट्र"*
*कम से कम पांच ग्रुपों में फॉरवर्ड करें!🙏
कुछ को मैं जगाता हूँ!
कुछ को आप जगाऐं!
राष्ट्रधर्म :सर्वोपरि
🚩जय श्री राम 🙏
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